लेखनी कविता - सभी सोचते - बालस्वरूप राही
सभी सोचते / बालस्वरूप राही
सभी सोचते : कितने प्यारे
मेरे पापा, मेरा घर,
होता है अभिमान सभी को
अपने धर्म, विचारों पर।
सही समझना बस अपने को
अन्य सभी को सदा गलत,
अच्छी बात नहीं होती है
भूल कभी यह करना मत।
झूठी शान और गुस्से से
सारा काम बिगड़ता है,
चोटी-चोटी बातों को ले
क्यों संसार झगड़ता हैं?